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Saturday, April 10, 2010

कॉलेज के नाम पर, लम्बा मैदान है,

हम भी होते नवाब, सजते अपने भी ख्वाब |
पर क्या करें जनाब, किस्मत अपनी ख़राब |

हम भी बुरे नहीं, सूरत भी है सही |
गम है इस बात का, कोई फंसती नहीं |

हांथों में जाम है, दिल में अरमान है |
जिस राहों में चले, अपनी पहचान हो |

रातों को हम जगे, कुछ भी पढ़ सकें |
खोली जो बुक कभी, पढ़ते ही सो गए |

बैकों से है भरी, अपनी ये ज़िन्दगी ,
नेटवर्क दिखता नहीं, ada है सर फ़िरी |

गम पहले साल का, अबतक मेरे साथ है,
पर ये चिंता किसे, हम तो बिंदास है |

जो कुछ हमने पढ़ा, सब का सब लिख दिया,
नंबर आते नहीं, फिर मेरी क्या खता |

कॉलेज के नाम पर, लम्बा मैदान है,
खंडर में फंसी , हम सबकी जान है |

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