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Sunday, May 30, 2010

फिर याद खँडहर आता है

कितनी यादे कितने वादे,
जब आये थे ले आये थे |
एक दूजे से मिलने का ,
हम
वादा भी कर आये थे |
फर्क नहीं पड़ता था हमको,
दुनियाँ
के जस्बातो से |
अपने अपने सपनो को,
हम मुट्ठी में भर लाये थे |
क्या खोया है हम सब ने,
अब ये अहसास डराता है |
टुटा फूटा जैसा भी था,
फिर याद खँडहर आता है |
सखा पुराने , नए बहाने,
अब भी ढूँढा करता हूँ |
कालिज नहीं मगर कालिज कि,
मस्ती ढूँढा करता हूँ |
हर चौराहे पर दिल का,
जो टूकड़ा फेक के आया था|
आज उसी चौराहे का मै,
रास्ता ढूँढा करता हूँ |