आज तक ये खँडहर अपनी बुलंद है,
कौन कहेगा कि ईमारत बनी नहीं
हर ईंट चाट ली इन्होने घून कि तरह,
कौन कहेगा कि इन्हें धन मिला नहीं
मकबरा कहो या कहो ताज महल तुम,
ये लाश हमारी है जिसे छत मिला नहीं
ये स्तबल खुले हुए नौ साल हो गए,
चारा कहाँ गया, ये किसी को पता नहीं
रुसवा किया हमें, बाघ, लाड़कर ने पर,
कौन मानेगा , कदम को कुछ पता नहीं
हर वक़्त खड़ी है , यहाँ पर फ़ौज मराठा,
कोई भी मुह खोल कर, इनसे बचा नहीं
हर वक़्त हवा रुख बदलती है फिजा में पर,
MGM में आज तक कुछ भी हिला नहीं