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Monday, January 25, 2010

मकबरा कहो या कहो ताज महल तुम,

आज तक ये खँडहर अपनी बुलंद है,

कौन कहेगा कि ईमारत बनी नहीं

हर ईंट चाट ली इन्होने घून कि तरह,

कौन कहेगा कि इन्हें धन मिला नहीं

मकबरा कहो या कहो ताज महल तुम,

ये लाश हमारी है जिसे छत मिला नहीं

ये स्तबल खुले हुए नौ साल हो गए,

चारा कहाँ गया, ये किसी को पता नहीं

रुसवा किया हमें, बाघ, लाड़कर ने पर,

कौन मानेगा , कदम को कुछ पता नहीं

हर वक़्त खड़ी है , यहाँ पर फ़ौज मराठा,

कोई भी मुह खोल कर, इनसे बचा नहीं

हर वक़्त हवा रुख बदलती है फिजा में पर,

MGM में आज तक कुछ भी हिला नहीं

Monday, January 11, 2010

प्रधानाचार्या


ये कविता पूरी तरह एम.जी.एम नॉएडा कि प्रधानाचार्या श्रीमती गीता लाड़कर को समर्पित है |जिन्होंने अपने कार्य काल के बहु मूल्य घंटे हमारे साथ बिताएं और हमें कभी अहसास नहीं होने दिया कि एम.जी.एम नॉएडा बाक़ी एम.जी.एम समुदाय का अभिन्न अंग है |जिनका नॉएडा दौरा सिर्फ और सिर्फ व्यक्तिगत कार्यों से होता है,देहरादून,मसूरी,नैनीताल इनके ह्रदय के अत्यंत समीप है | मेरे दिल के भड़ास को व्यक्त करती कुछ पंक्तियाँ आप सभी के सम्मुख रखता हूँ |उम्मीद यही है आप सभी कि भावना को यथा संभव चित्रित कर सकूँ ...

खुद को माँ कहने वाली,
क्या जाने माँ जैसी बनना |
वचनों से प्रेम लूटाने वाली,
क्या जाने बच्चो संग रहना|

है पास नहीं जिसके दो पल,
खुद के छौनो से मिलने का|
गद्दों में जिसकी उम्र कटी,
क्या जाने दर्द बिछौनो का |

जो खुद महलों में रहती है,
क्या जाने दर्द खंडहर का|
है माँ कहलाना सरल मगर,
मुस्किल है माँ जैसी बनना |

है लाड़ नहीं जिसके कर में,
क्या जाने अर्थ लाड़कर का |
जो गागर सुखी भीतर से,
क्या जाने छलकाना ममता |

अंत में सिर्फ इतना कहना चाहूँगा ...

हो चरण कमल कोमल जिसके,
वो क्यूँ कंकर पर चरण धरे |
पर खुद को माँ कहने से पहले,
यारों थोडा तो शर्म करे |




Thursday, January 7, 2010

कोई राज़ आर्यन आयेगा

जो हुआ नहीं नौ सालों में,
कुछ सालों में हो जायेगा
गुरुकुल कि हवा बदलने को,
कोई राज़ आर्यन आयेगा
पास में जिसके धन होगा,
और कुछ करने का मन होगा
सूखे पत्तों से यार सही,
थोडा परिवर्तन लायेगा
ये सिस्टम तो छननी है,
हर खोट यहाँ छन जाता है
ऊपर से छाजन शुरू हुआ,
कुछ शेष नहीं बच पाता है
अपनी नौ सालों कि मेहनत,
यूँ hi बेकार न जाएगी
शायद अगले कुछ सालों में,
मेहनत अपनी रंग लाएगी
माप दंड को कर किनार,
अब दंड माप पर हावी है
सब रुल नियम कानून यहाँ,
कुछ के हांथों कि दासी है
बेकार कि कार्य प्रबंधन है,
अपने प्रभुता का बंधन है
धन्य है वो मानुष जाती ,
जिसका इससे गठबंधन है