किताबों को लगा दिल से,
वो पहली बार जब आई |
मैं भुला नाम अपना भी,
चली कुछ ऐसी पुरवाई |
वो चलना यार झुक कर के,
हवा के वेग के जैसा |
मैं भुला नाम अपना भी,
वो जब भी सामने आई |
बहुत चंचल हुआ करता था,
मैं भी उन दिनों में पर |
नहीं कुछ बोल पाया मैं,
वो जब भी सामने आई |
मैं यादों के समंदर में,
लगा गोते हुआ विजयी |
मगर वो दिल कि बातों को,
कहाँ अब भी समझ पाई |
सुना है अब तलक मुझसा,
एक साथी ढूंढती है वो |
जो उसके साथ था हरदम,
उसे वो ढूंढ ना पाई |
उसे नफ़रत थी गजलों से,
मुझे कुछ लोग कहतें थे |
हर ग़ज़ल नाम थी उसके,
जिसे वो पढ़ नहीं पाई |
किताबों को लगा दिल से,
वो पहली बार जब आई |
मैं भुला नाम अपना भी,
चली कुछ ऐसी पुरवाई |
awsome!plz keep onnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn
ReplyDeleteबहुत खूब, लाजबाब !
ReplyDeletemast hai sir
ReplyDelete@Pooja: thanks..
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